वैयक्तिक समाज कार्यकर्ता और सेवार्थी के मध्य सम्बन्ध - Relationship Between Social Case Worker And Client.


कार्यकर्ता और सेवार्थी में व्यवसायिक सम्बन्ध होता है। सेवार्थी से कार्यकर्ता जो सम्पर्क स्थापित करता है वह उद्देश्य रहित नहीं होता। व्यवसायिक व्यक्ति अपने उद्देश्य के अनुसार कार्य करता है। उसका उद्देश्य सेवार्थी की मनोसामाजिक आवश्यकताओं का ज्ञान प्राप्त करना होता है।  किसी व्यक्ति से केवल मिलने और बात करने से ही सम्बन्ध स्थापित नही हो जाते। जब एक व्यावसायिक उद्देश्य के लिये आत्मीयता स्थापित की जाती है तभी व्यक्ति को सेवार्थी कहा जा सकता है। हैमिल्टन का विचार है कि सेवार्थी से सम्बन्ध स्थापित करने के लिये अनिवार्य है कि कार्यकर्ता एक ऐसे पर्यावरण का निर्माण करे, जिसमें सेवार्थी को अपनत्व की भावना का अनुभव हो, उसकी आवश्यकताएं स्वीकृत की जाएं और उसे इस बात का अधिकार दिया जाये कि वह अपने विषय में स्वयं निर्णय कर सके।

 कार्यकर्ता-सेवार्थी सम्बन्ध दो प्रकार के होते हैं 

 विषयात्मक सम्बन्ध - यह एक ऐसा सम्बन्ध है जिसका आधार वास्तविकता पर है। अर्थात् कार्यकर्ता के विषय में सेवार्थी जो मत स्थापित करता है वह उसकी निपुणता, नम्रता, कार्यक्षमता, और ज्ञान पर आधारित होता है न कि भावनात्मक प्रत्यक्षीकरण पर। कार्यकर्ता को सेवार्थी वैसा ही समझता है जैसा वह वास्तविकता में है। 

 आत्मचेतनात्मक सम्बन्ध - यह एक ऐसा सम्बन्ध है जिसका आधार सेवार्थी की आत्म-चेतनात्मक भावनाओं पर होता है। अर्थात् सेवार्थी कार्यकर्ता को भावनात्मक रूप से देखने लग जाता है और उसके विषय में वह जो कुछ मत रखता है वह उसके अवास्तविक प्रत्यक्षीकरण पर आधारित होता है। कार्यकर्ता की सफलता इसी में है कि वह सेवार्थी से विषयात्मक सम्बन्ध स्थापित करें। भावनात्मक स्थानांतरण कार्यकर्ता सेवार्थी सम्बन्धों का एक रूप हैं। व्यक्ति की समस्त प्रतिक्रियाओं पर उन मनोवृत्तियों का रंग चढ़ा हुआ होता है जो उसने बाल्यावस्था में ग्रहण की है और जिनका प्रयोग वह अपने वर्तमान सम्बन्धों में करता है। 

अर्थात् बाल्यावस्था की मनोवृत्तियो के आधार पर ही प्रौढ़ावस्था में अन्य व्यक्तियों से सम्बन्ध स्थापित करता है। इन्हीं घटनाओं को भावनात्मक स्थानांतरण प्रतिक्रिया कहते हैं। इसका अर्थ यह होता है कि एक परिस्थिति की मनोवृत्तियां दूसरी परिस्थिति को हस्तांतरित की जाती हैं। बाल्यावस्था में जैसी मनोवृत्तियां, विचार और भावनाएं माता-पिता के प्रति होती है वैसी ही मनोवृत्तियां, विचार और भावनाएं, प्रौढ़ावस्था में दूसरे व्यक्तियों और कार्यकर्ता के प्रति होती है। भावनात्मक स्थानांतरण द्वारा जो सम्बन्ध स्थापित होते हैं उनका आधार सेवार्थी के अवास्तविक, आत्म चेतनात्मक प्रत्यक्षीकरण पर होता है। कार्यकर्ता को चाहिये कि भावनात्मक स्थानांतरण की घटनाओं को समझने का प्रयास करें और कम करने की चेष्टा करें। इसके लिये आवश्यक है कि सेवार्थी की परिस्थति के वास्तविक कारकों पर प्रत्यक्ष रूप से विचार विमर्श किया जाये और सेवार्थी को वास्तविकता का परिचय कराया जाये। यह भी आवश्यक है कि सेवार्थी अपनी विशेष परिस्थिति के विषय में वर्तमान और सचेत संवर्गों को प्रकट करे। 

3. सम्बन्ध और साक्षात्कार  सेवार्थी की समस्याओं को समझने के लिये आवश्यक है कि उससे घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित किये जाये। समस्याओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है कि सेवार्थी के पूर्व इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त की जाये। साक्षात्कार करते समय कार्यकर्ता को चाहिए कि वह सेवार्थी की वर्तमान परिस्थिति का ध्यान रखे और प्रक्रिया को उसी स्थान से आरम्भ करे जिस स्थान पर सेवार्थी उस समय हो। 

4. सम्बन्ध में आत्मज्ञान किसी भी ऐसे व्यवसाय में जिसका उद्देश्य लोगों की सहायता करना हो सम्बन्धों के सचेत प्रयोग के लिये कार्यकर्ता में आत्मज्ञान होना अनिवार्य है। उसे यह ज्ञात होना चाहिए कि उसने इस व्यवसाय को किन प्रेरणाओं के आधार पर ग्रहण किया है। उसको अपनी आत्मचेतना, पक्षपात और विशिष्ट रूचि का भी ज्ञान होना चाहिए। समस्या के निदान के लिए न केवल सेवार्थी की भावनाओं का ज्ञान आवश्यक है बल्कि कार्यकर्ता को अपनी भावनाओं का भी ज्ञान होना चाहिये और उसमें इस बात की योग्यता होनी चाहिये कि अपनी और सेवार्थी की भावनाओं के अन्तर को समझ सके। 

5. अधिकार का प्रयोग वैयक्तिक समाज कार्य में कभी-कभी सेवार्थी के हित के लिये संकेत, उपदेश आदि के द्वारा अधिकार का प्रयोग किया जाता है। वैयक्तिक समाज कार्य के वातावरण में कार्यकर्ता के अधिकार का आधार उसकी स्थिति से सम्बन्धित प्रतिष्ठा एवं मर्यादा पर है। इस अधिकार का प्रयोग बलपूर्वक नियंत्रण या धमकी के रूप में नहीं होना चाहिये। अधिकार के उपचार सम्बन्धी प्रयोग के लिए अनिवार्य है कि कार्यकर्ता सेवार्थी के व्यक्तित्व के विकास का ज्ञान प्राप्त करे। उसकी विद्रोही भावनाओं, आक्रमणकारी प्रवृत्तियों या स्नायुरोग सम्बन्धी विचलन के विषय में ज्ञान प्राप्त करे। जो कार्यकर्ता मनोविज्ञान की पूरी जानकारी रखता है, वह अधिकार का सकारात्मक रूप से प्रयोग करने से नहीं डरता परन्तु वह ऐसा करने से पहले यह निश्चित कर लेता है कि सेवार्थी और संस्था के कार्यों के लिये ऐसा करना उचित होगा कि नहीं। 

6. बहुमुखी कार्यकर्ता सम्बन्ध कभी-कभी हो सकता है कि किसी व्यक्ति की अनेक समस्यायें हों- जैसे एक ही परिवार में आर्थिक समस्या के साथ-साथ स्वास्थ्य की समस्या। या हो सकता है कि एक ही परिवार में एक से अधिक रोगियों की समस्यायें हों-जैसे पति एवं पत्नी, माता-पिता और उनकी सन्तान, रोगी और उसके सम्बन्धी। ऐसी परिस्थितियों में बहुधा एक से अधिक कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है। जब एक से अधिक कार्यकर्ता हो तो उनमें आपस में सहयोग होना चाहिये। अधिकतर संस्थाओं में सेवार्थियों का प्रवेश करने वाले कार्यकर्ता सेवार्थियों की समस्यायें सुलझाने का कार्य नहीं करते। अतः प्रवेश करने वाले कार्यकर्ताओं को चाहिये कि वह सेवार्थी से संवेगात्मक सम्बन्ध न स्थापित करे और सेवार्थी की समस्या के संवेगात्मक पक्षों को न छेड़े ताकि जब सेवार्थी दूसरे कार्यकर्ता को हस्तांतरित किया जाये तो वह इसका विरोध न करें। कार्यकर्ता को चाहिये कि जब वह सेवार्थी को किसी अन्य कार्यकर्ता के प्रति हस्तांतरित करे तो उसका उचित परिचय कराए।

 7. सम्बन्धों में मूल्यों का स्थान यह कहना उचित है कि कार्यकर्ता को अपने मूल्य बलपूर्वक सेवार्थी के सर नहीं मढ़ना चाहिए परन्तु अधिकांश परिस्थितियों में जहां सामंजस्य या समायोजन की समस्या हो वहाँ मूल्यों की उपेक्षा नहीं की जा सकती। ऐसी परिस्थितियों में यह देखना पड़ेगा कि सेवार्थी के मूल्य उसके और समाज के लिए हितकर हैं या हानिकारक। यदि व्यक्ति और समाज के मूल्यों में संघर्ष हो तो उसे इस संघर्ष को दूर करना चाहिए। इसके अतिरिक्त उसे यह भी करना  चाहिए कि वह सेवार्थी की इस प्रकार सहायता करे कि वह विभिन्न रचनात्मक मूल्यों में से अपनी रूचि के अनुसार चुनाव कर सके और हानिकारक मूल्यों को छोड़ दे। फिर भी कार्यकर्ता को यथा सम्भव विषयात्मक रूप से व्यवहार करना चाहिए और अपनी आत्मचेतना सम्बन्धी रूचि पर नियंत्रण रखना चाहिए।