तृतीय पीढ़ी के कम्प्यूटर का इतिहास - Third Generations of Computers


 

तृतीय पीढ़ी के कम्प्यूटर


वर्ष 1958 मे जैक सैत किल्मी और रोबर्ट नोयी के प्रथम एकीकृत सर्किट (Integrated Circuit) जिसे आई सी (IC) कहा जाता है जिसमें बहुत सारे इलेक्ट्रॉनिक्स घटक (ट्रॉजिस्टर, रेसिस्टर, कापसिटर) को एकल सिलिकॉन चीप पर एकीकृत किया जाता है इससे विभिन्न घटक को जोड़ने के बागर की आवश्यकता होता है। आई सी (IC) टेक्नोलॉजी को माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक टेक्नोलॉजी भी कहा जाता है क्योंकि इसके द्वारा बहुत अधिक संख्या में इलेक्ट्रॉनिक सर्किट और स्विच को एक बहुत छोटी चीप पर एकीकृत किया जाना संभव हो सका, प्रारंभ में 10 से 20 इलेक्ट्रॉनिक घटकों को चौप पर एकीकृत किए जा सके इसे छोटे पैमाने का एकीकृतकारण (Small Scale Interigration ) (SSI) कहा गया. कुछ समय के बाद टेक्नोलॉजी में और उन्नत किया गया जिससे 100 इलेक्ट्रॉनिक पटकों को चीप पर एकीकृत किए जाना संभव हो पाया जिसे मध्यम पैमाने का एकीकृत कारण (Medium Sclae Integration MSI) नाम से जान जाता है।





तृतीय पीढ़ी के कंप्यूटर में एकीकृत सर्किट ( Integrated Circuit IC) का प्रयोग होने लगा आई सी आकार में छोटा लकिन काफी विधनीय इलेक्ट्रॉनिक सर्किट साबित हुआ यह एक तेजी से कम करने वाला डिवाइस जो कम पॉवर लेता एवं कम ऊष्मा उत्पन्न करने वाला एल्क्ट्रोनिक घाटक था. इसी के कारण तृतीय पीढ़ी के कंप्यूटर द्वितीय पीढ़ी के कंप्यूटर के तुलना में कम पाँवर लेने वाला, कम ऊष्मा उत्पन्न करने वाला अधिक विश्वनीय आकर के छोटा और सस्ता होता था.





इसके अलावा भंडार टेक्नोलॉजी में रैडम एक्सेस तकनीक वाला चुम्बकीय डिस्क का उपयोग किया जाता था. इस पीढ़ी के कंप्यूटर में मुख्य मेमोरी के क्षमता 5 मेगाबाइट से 10 मेगाबाइट तक होती थी.




इस पीढ़ी में सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में उच्च प्रोग्रामिंग भाषा का एक स्तरीय बनाया गया तथा टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम का उद्भव हुआ. इस पीढ़ी में ही सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर को अलग- अलग बेचा जाने जगा जिससे सॉफ्टवेयर कंपनी का विकास होना प्रारंभ हो गया था.





डीतीय पीढ़ी के कंप्यूटर में बैच ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग होता था इसमें प्रोग्रामर अपने प्रोग्राम को कंप्यूटर सेण्टर पर क्रियान्वित करने के लिए जमा करना होता था, कंप्यूटर सेंटर के कर्मचारी सभी जॉब को कंप्यूटर पर क्रियावित करने के बैच पद्धति के अनुसार जब को समय बद्ध किया जा था. कंप्यूटर पर प्रोग्राम क्रियाविन्त होने के पश्चात प्रोग्रामर अपने प्रोग्राम के आउटपुट को कंप्यूटर से लेकर यसका मूल्यांकन कर यदि जरूत होने पर फिर से जॉब को क्रियान्वन के लिए कंप्यूटर सेण्टर में जमा किया जाता था. इन सभी कार्यों में काफी समय तथा रिसोर्स का व्यय होता था.





डार्टमीप (dartmouth) कॉलेज के जॉन केमेन्य एंड ऑॉमस कुर्तज ने टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम के कांसेप्ट का प्रादुर्भाव किया जिसके कारण प्रत्तेक यूजर को यह महसूस होता था कंप्यूटर का उपयोग केवल वही कर रहा है। क्योंकि इसमें प्रतेक यूजर को एक शोर्ट टाइम के कोम्पुत्र पर अपने प्रोग्राम को क्रियान्वित करने का मौका मिलता था किसी यूजर की समय अवधि समाप्त होने के उपरांत किसी अन्य यूजर को कंप्यूटर प्रोसेसर पर अपने प्रोग्राम को क्रियांवित करने का मौका मिलाता था. यह समय चक्र घूम कर फिर पाहिले यूजर के पास आने पर ही वह अपना अन्य कार्य को क्रियान्वित कर सकता था. इसे राउंड रोविन पद्धति कहते हैं। इस पद्धति पर कार्य करने वाले ऑपरेटिंग सिस्टम को टाइम शेयरिंग सिस्टम कहा जाता है।





इसके करण कम क्षमता वाले कंप्यूटर किसी विशेष कार्य के लिए उच्च क्षमता वाले कंप्यूटर से जोड़ा जा सकता था और कार्य को क्रियान्वित ऑनलाइन तरीके से किया जाना संभव हुआ, इससे प्रोग्रामर को अधिक सुविधा प्राप्त हुआ जिससे सॉफ्टवेयर उद्योग में उत्पाद के बुहोतरी हुआ





वर्ष 1965 तक सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर एक साथ ही बेचा या खरीदा जाता था. वर्ष 1969 में प्रथमतः IBM ने सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर को अलग-अलग उतपाद के रूप में बेचना प्रारंभ कर दिया जिसके कारण सॉफ्टवेयर उद्योग का प्रादुर्भाव हुआ. ग्राहक अपने जरूरत के अनुसार ही प्रोडक्ट खरीदने का प्रचालन प्रारंभ हो गया.





एकीकृत सर्किट Integrated Circuit IC)


१९६० में मेनफ्रेम कंप्यूटर का विकास हुआ लेकिन इसकी कीमत के कारण इसका उपयोग केवल बड़े उद्योगपतीयों और कारोबारीयों तक ही सिमित था, इसी वजह से कम किमित वाले तेज कंप्यूटर का विकास पर जोर दिया गया इसके लिए कई कंपनी में सरहिनीय कार्य किये है जिसमें से डिजिटल इक्विपमेंट कारपोरेशन (DEC) के प्रथमतः मिनी कंप्यूटर PDP-8 Programmed Data Processor) को बाजार में सन १९६५ में उपलब्ध कराया था ये कंप्यूटर टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करता है जिसके कारण एक साथ कई लोग इस कंप्यूटर पर काम करने में सक्षम हो पाए अतः कंप्यूटर पर काम करने की लागत में भी कमी आई. मिनी कंप्यूटर के उपलब्ध होने से छोटे और मझोले व्यापारियों भी अपने व्यापार के लिए कंप्यूटर का उपयोग करने लगे थे. १९७१ आते आते मिनी कंप्यूटर बनाने वाली 25 कंपनियाँ बाज़ार में आ गयी थी.






तृतीय पीढ़ी के कंप्यूटर की विशेषताएँ


• इस पीढ़ी के कंप्यूटर द्वितीय पीढ़ी के कंप्यूटर के तुलना में अधिक शक्तिशाली थे. ये कंप्यूटर एक सेकंड में एक मिलियन निर्देशों को क्रियान्वित कर सकता था.


• इसको को रखने के लिए इतीय पीढ़ी के कंप्यूटर के तुलना में कम जगह की आवश्यकता होती थी.



• इस पीढ़ी के कंप्यूटर को चलने के लिए पॉवर द्वितीय पीढ़ी के कंप्यूटर के तुलना में कम लगता था और ये कम उष्मा भी उत्पन्न करते थे. इसके बावजूद इस पीढ़ी के कंप्यूटर को बतानुकलित के आवस्यकता होती थी.


• द्वितीय पीढ़ी के कंप्यूटर के तुलना में ये अधिक विश्वसनीय तथा इसमें हार्डवेयर में खराबी भी कम आता


• इस पीढ़ी के कंप्यूटर के पास प्रथिमिक और द्वितीयक भण्डारण किस क्षमता द्वितीय पीढ़ी के कंप्यूटर के तुलना में अधिक था,


• वे कंप्यूटर सामान्य उद्देश के लिए बनाया गया था जिससे विज्ञानिक और व्यापारिक दोनों तरह के उपयोग किये जा सकते थे.


• इस पीढ़ी के कंप्यूटर के निर्माण में उच्च तकनीकी का उपयोग किया जाता था जिसका सेटअप अधिक खर्चीला होता था लेकिन इसके के कारण इलेक्ट्रोक्टिक सर्किट की असेंबली आसान और तेजी से होने लगा था. इन सभी कारणों से कंप्यूटर के मूल्य के बहुत अधिक कमी आई थी.


• इस पीढ़ी में उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा का समान्यीकृत किया गया था,


• टाइम शेयरिंग सिस्टम का प्रादुर्भाव हुआ था। इससे एक साथ कई यूजर कंप्यूटर पर काम कर सकता था.


• टाइम शेयरिंग सिस्टम ने प्रोग्रामर को प्रोग्राम लिखने और उसे क्रियान्वित करने में लगने वाले समय के काफी बचत की और इससे उसकी उत्पादन क्षमता में वृद्धि हुई थी.


● इस पीढ़ी से हाईवेयर और सॉफ्टवेयर को अलग अलग बेचा जाने लगा,


• इस पीढ़ी मिनी कंप्यूटर का निर्माण हुआ था जिससे छोटी और मझोले कंपनियाँ भी कंप्यूटर का उपयोग


करने लगी थी.