बहलोल लोदी की उपलब्धियां और अफ़गान राजत्व का सिद्धान्त - Achievements of Bahlol Lodi and Theory of Afghan Kingship

बहलोल लोदी की उपलब्धियां और अफ़गान राजत्व का सिद्धान्त - Achievements of Bahlol Lodi and Theory of Afghan Kingship

बहलोल लोदी की उपलब्धियां और अफ़गान राजत्व का सिद्धान्त - Achievements of Bahlol Lodi and Theory of Afghan Kingship

अफ़गान राजत्व का सिद्धान्त 

बहलोल अफ़गान जाति का था। अफ़गानों की कबाइली राजनीतिक अवधारणा में विश्वास करता था। शासक की पूर्ण सम्प्रभुता और उसकी निरंकुश शक्ति में अफगानों की आस्था नहीं थी। उनका विश्वास शासक अथवा मुखिया के चुनाव में था न कि राजत्व के दैविक सिद्धान्त और वंशानुगत शासन की अवधारणा में अपनी कबाइली संस्कृति में विश्वास रखते अफ़ग़ानों के विभिन्न कबीले, शासक को अपनी बिरादरी का मुखिया मानते थे न कि अपना स्वामी बलबन, अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद तुगलक के राजत्व के दैविक सिद्धान्त के विपरीत, सुल्तान बहलोल लोदी अफगानों के कबाइली और कुनबे की राजनीतिक अवधारणा में विश्वास करता था। बहलोल ने कभी भी एक स्वेच्छाचारी, निरंकुश एवं पूर्णसम्प्रभुता प्राप्त शासक की भांति व्यवहार नहीं किया। वह स्वयं को राज्य संघ का प्रमुख मात्र मानता था। उसने अपने पुरखों के स्थान रोह से अपने कबीले वालों को अपने राज्य में आने के लिए निमन्त्रित किया था। अपनी बिरादरी के अमीरों को उसने अपनी बराबरी का दर्जा दिया और सल्तनत में उनको अपना हिस्सेदार माना। उनके रुठने पर उनको मनाने के लिए उनके घर तक जाने में उसे कोई ऐतराज़ नहीं था और उनके साथ एक ही मसनद पर बैठने में उसे कोई संकोच नहीं था। उसने अपने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों को अपने सम्बन्धियों और अपने अमीरों में बांटने का निर्णय लिया था।






बहलोल लोदी की उपलब्धियां 

जौनपुर के शर्की राज्य पर विजय

जौनपुर के शर्की शासक दिल्ली सल्तनत के लिए सबसे बड़ा खतरा थे। सन् 1452, 1457, 1473, 1474 तथा 1479 में जौनपुर के सुल्तानों दिल्ली पर तथा दोआब पर अधिकार करने के लिए असफल सैनिक अभियान किए। जौनपुर के शासकों ने विद्रोही अमीरों का गुप्त समर्थन प्राप्त कर बहलोल के लिए दोआब में कठिनाइयां खड़ी की किन्तु उसने उनका भ सफलतापूर्वक सामना किया। दीर्घकालीन संघर्ष के बाद बहलोल सन् 1479 में जौनपुर पर निर्णायक विजय प्राप्त करने में सफल रहा।

 

विद्रोहियों का दमन

 

राज्य की राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर मुल्तान, मेवात तथा दोआब के अमीरों तथा जागीरदारों ने न केवल बहलोल को राजस्व देना रोक दिया अपितु शर्की सुल्तानों से उसके विरुद्ध सांठगांठ करना भी प्रारम्भ कर दिया। बहलोल ने मेवात, सम्भल, कोल, साकित, इटावा, रापरी, भोगाँव, ग्वालियर आदि के विरुद्ध अभियान किए।

दिल्ली सल्तनत के सम्मान की पुनर्प्रतिष्ठा

बहलोल लोदी ने राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार किया। यद्यपि उसने अपने राज्य के लिए इस्लाम के सिद्धान्तों को आधार बनायाँ किन्तु बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम प्रजा का उत्पीड़न करने में उसने कोई रुचि नहीं ली। अनेक हिन्दू शासक व जागीरदारों से उसके मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। बहलोल लोदी ने साठ वर्ष से भी अधिक समय से चली आ रही राजनीतिक अस्थिरता को समाप्त कर साम्राज्य-विघटन की प्रक्रिया पर अंकुश लगाने में पर्याप्त सफलता प्राप्त की।