उद्विकास की विशेषताएं - Characteristics of Evoluvation

 उद्विकास की विशेषताएं - Characteristics of Evoluvation


1. उद्विकास निरंतर एवं धीमी गति से होने वाला परिवर्तन है- जैसा कि उद्विकास के अर्थ से स्पष्ट है कि उद्विकास समाज में होने वाला परिवर्तन है। लेकिन परिवर्तन की गति इतनी धीमी होती है कि इसे देख पाना असंभव होता है। परिवर्तन को हम एक निश्चित समय के पश्चात समझ पाते हैं। यदि हम जैविक परिवर्तन की बात करें तो भी देखते हैं कि एक बालक किशोर और युवा हो जाता है किंतु हमें उसके बड़े होने की प्रक्रिया स्पष्ट रूप से नहीं दिखाई देती। यह बात समाज पर भी लागू होती है। समाज में भी निरंतर परिवर्तन जारी है लेकिन इस परिवर्तन को हम एक लंबे समय के बाद अनुभव कर पाते हैं।


2. उद्विकास सदैव सरलता से जटिलता की ओर होता है किसी भी वस्तु के बाहर की ओर फैलने को हम उद्विकास कहते हैं और यह प्रक्रिया हमेशा सरलता से जटिलता की ओर होती हैं। कोई भी वस्तु प्रारंभ में आपस में इतनी घुली मिली और सरल होती है कि उसके बीच में अंतर स्पष्ट करना कठिन होता है।

किसी भी प्राणी या वस्तु का स्वरूप तभी निश्चित होता है, जबक वह पृथक हो जाती हैं, किसी भी क्षेत्र में विकास चाहे वह सामाजिक विकास हो या जैविक विकास हो दोनों की प्रारंभिक अवस्था बहुत ही सरल होती है। जैसे-जैसे उनमें विकास होता है उनका स्वरूप जटिल होता जाता है। उदाहरण के तौर पर एक पौधा जब छोटा रहता है तो हम उसके पत्ते और तने तक को गिन सकते हैं लेकिन जैसे ही वह बड़ा होता है, उसमें इतनी जटिलता आ जाती है कि हम उसके तने तक को भी नहीं गिन पाते हैं। यही बात मानव शरीर पर भी लागू होती है। प्रारंभ में मानव भ्रूण केवल एक मांस का टुकड़ा होता है पर विकास के क्रम में धीरे-धीरे उसके हाथ-पैर, नाक-कान, आँख आदि विकसित होते हैं और दिखाई भी देने लगते हैं। समय के परिवर्तन के साथ मानव मस्तिष्क में जटिलता भी बढ़ती जाती है।


3. यह विभेदीकरण की प्रक्रिया है- उद्विकास के दौरान समाज के विभिन्न अंगों के बीच में विभिन्नता पैदा होती है। उद्विकास के दौरान मानव के विभिन्न अंग एक दूसरे से पृथक हो जाते हैं और उनके कार्यों में बटवारा हो जाता है।

उसी तरह से समाज के विभिन्न अंग भी पृथक होते हैं। कार्य क्षेत्र भी अलग-अलग होते हैं। यह प्रक्रिया विभेदीकरण की प्रक्रिया कहलाती है। इस तरह उद्विकास को विभेदीकरण की प्रक्रिया कह सकते हैं।


4. उद्विकास एक निश्चित दिशा में होने वाला परिवर्तन है- उद्विकास निश्चित दिशा में होने वाला परिवर्तन है। हालांकि यह कभी निश्चित नहीं होता है। यदि हम समाज के और मानव शरीर के विकास की प्रक्रिया को देखें तो हमें यह स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि प्रारंभ में समाज का स्वरूप बहुत सरल था और विकास के क्रम में निरंतर आगे की ओर बढ़ रहा है, प्रगति की ओर है, मानव शरीर भी प्रारंभ में बाल्यावस्था में रहता है, उसके बाद में किशोरावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था में पहुंचता है। यह उदाहरण इस बात का प्रमाण है कि उद्विकास एक निश्चित दिशा में होने वाला परिवर्तन है।


5. वस्तु की आंतरिक वृद्धि उद्विकास है- उद्विकास हमेशा वस्तु की आंतरिक वृद्धि के कारण होता है। यदि किसी वस्तु में कोई परिवर्तन नहीं होगा तो उद्विकास की प्रक्रिया संभव नहीं है।


6. वस्तु और समाज में गुणात्मक परिवर्तन यदि किसी वस्तु और समाज में गुणात्मक परिवर्तन होता है। तभी उद्विकास की प्रक्रिया संभव है। उद्विकास के दौरान समाज मे और वस्तु में गुणात्मक परिवर्तन होता है न कि संख्यात्मक गुणात्मक परिवर्तन को हम अनुभव कर सकते हैं उसका मापन संभव नहीं है।


7. उद्विकास निश्चित चरणों एवं क्रम में होने वाला परिवर्तन है- उद्विकास की प्रक्रिया का अध्ययन करने से यह स्पष्ट है कि विकास क्रम में प्रथम चरण के बाद द्वितीय चरण, द्वितीय के बाद तृतीय एवं चतुर्थ चरण में आता है। ऐसा नहीं हो सकता कि प्रथम के बाद तृतीय चरण आ जाए, तृतीय के बाद पंचम आए और फिर द्वितीय चरण आए। उदाहरण के तौर पर ऐसा नहीं हुआ है कि औद्योगिक युग के बाद हम आखेट अवस्था पर आए हो या विकास शारीरिक विकास के क्रम में एक बच्चा पहले युवा हो फिर बाल्यावस्था में आए और इसके बाद में वृद्धावस्था में पहुंचे।


8. उद्विकास एक मूल्य रहित प्रक्रिया है- उद्विकास एक निरंतर होने वाली प्रक्रिया है और इस परिवर्तन को भी हम लंबे समय के बाद समझ पाते हैं। प्रगति की तरह इसका संबंध समाज की अच्छाई और बुराइयों से नहीं होता है। इसका सामना हमें एक निश्चित समय के पश्चात करना पड़ता है। उद्विकास का परिणाम अच्छा है या बुरा इसलिए हम इसे एक मूल्य रहित प्रक्रिया कहते हैं।


9. उद्विकास के चरणों की पुनरावृत्ति नहीं होती- उद्विकास एक क्रम में होने वाला परिवर्तन होता है। इसलिए जिस क्रम को छोड़ दिया गया है। उसे पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता जैसे एक बालक युवा होने के बाद पुनः बाल्यावस्था में नहीं आ सकता या उस अवस्था को प्राप्त नहीं कर सकता।


10. उद्विकास एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है- उद्विकास एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है। क्योंकि यह हर स्थान में हर समय पाई जाती है।