वर्ग विभाजन के आधार - class division basis
वर्ग विभाजन के आधार - class division basis
रॉबर्ट बिरस्टीड द्वारा वर्ग विभाजन हेतु कुछ बिदुओं के बारे में बताया गया है तथा ये बिन्दु भारतीय संदर्भ में भी उल्लेखनीय हैं
1. धन, संपत्ति तथा आय
वर्ग निर्धारण के प्रमुख आधारों में धन, संपत्ति तथा आय होते हैं। व्यक्ति की आय जितनी अधिक होगी उसके पर उस्तनी ही ज्यादा संपत्ति तथा धन आदि होंगे। तथा उसके पास जितना अधिक धन होगा उतना ही अधिक वह सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण होगा, शिक्षित होगा। इस प्रकार से उस व्यक्ति का जीवन स्तर भी काफी ऊंचा होगा। मार्क्स जैसे अन्य विद्वानों की मान्यता है कि व्यक्ति का उत्पादन प्रणाली तथा उत्पादन के साधनों के स्वामित्व के आधार पर उस व्यक्ति के वर्ग को जाना जा सकता है। बुर्जुआ वर्ग का उत्पादन के साधनों तथा प्रणाली पर सबसे ज्यादा नियंत्रण रहता है तथा यही कारण है कि वह सदैव उच्च वर्ग का स्वामी बना रहता है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि व्यक्तिगत संपत्ति में वृद्धि तथा आर्थिक शक्तियों के वितरण में समानता असमानता द्वारा ही विभिन्न वर्गों का निर्माण तथा निर्धारण होता है।
हालांकि यहाँ मात्र धन तथा संपत्ति पर स्वामित्व के आधार पर ही वर्गों का निर्धारण करना उचित नहीं है। वर्गों के निर्धारण के लिए संपत्ति तथा धन के स्रोत भी आवश्यक होते हैं। अर्थात् धन व संपत्ति की प्राप्ति हेतु किस प्रकार के स्रोतों का उपयोग किया गया है, वे स्रोत समाज द्वारा स्वीकृत हैं अथवा नहीं। ईमानदारी तथा परिश्रम आदि समाज स्वीकृत तरीकों से अर्जित किया गया धन तथा संपत्ति, चोरी व धोखे आदि प्रकार के अनैतिक और समाज विरोधी तरीकों से प्राप्त किए गए धन व संपत्ति से सदैव उच्च माना जाएगा।
2. परिवार तथा नातेदारी व्यवस्था
भारत में एक व्यक्ति के वर्ग का निर्धारण में परिवार तथा नातेदार महत्वपूर्ण कारक होते हैं। हालांकि ये कारक पश्चिमी समाजों में भी कमोबेश रूप से काम करते हैं।
उच्च वर्गों में जन्म लिए बच्चे भी उच्च वर्ग से ही संबन्धित होते हैं। उदाहरण के लिए अंबानी, अडानी, नेहरू आदि परिवारों में जन्म लिए बच्चों की वर्गीय स्थिति स्वतः उच्च होती है। यह निर्धारण भारत जैसे देश में और भी अधिक निर्णायक तौर पर आवश्यक रहता है। यह ठीक साम्राज्यवादी समाजों की तरह से कार्य करता है, राजा का पुत्र ही राजा होगा तथा उसकी स्थिति भी राज दरबार के उत्तराधिकारी होने के नाते उच्च होगी।
3. व्यवसाय की प्रकृति
वर्ग के निर्धारण में व्यवसाय तथा उसकी प्रकृति भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इंजीनियर, डॉक्टर, अध्यापक, राजनीतिज्ञ आदि की पारिवारिक स्थिति चाहे किसी प्रकार की हो, उनका आर्थिक वेतन कितना भी कम हो, फिर भी समान्यतः इन्हें समाज में उच्च वर्ग की स्थिति ही प्रदान की जाती है। वहीं इनके विपरीत डाकू, चोर, वेश्या आदि के पास कितना भी धन हो, उन्हें समाज द्वारा सदैव निकृष्ट ही समझा जाता है तथा उनकी वर्गीय स्थिति सदैव निम्न ही रहती है।
भारत धर्म द्वारा संचालित देश है तथा यही वजह है कि यहाँ कर्मकांडीय ब्राह्मणों को समाज में उच्च स्थिति प्राप्त है। जबकि पश्चिमी देशों में व्यापार, शिक्षा, ज्ञान आदि के आधार पर दक्ष व्यक्ति को उच्च वर्ग में सम्मिलित किया जाता है।
4. शिक्षा
संभवत सभी समाजों में शिक्षित व्यक्तियों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है तथा उन्हें उच्च प्रस्थिति प्रदान की जाती है। भारतीय समाज भी इससे अछूता नहीं है। शीशन, प्रशिक्षण, तकनीक, ज्ञान विज्ञान आदि में कुशल व्यक्ति को समाज में प्रतिष्ठित समझा जाता है। इसके अलावा भारतीय संदर्भ में आध्यात्मिक व धार्मिक ज्ञान को भी वरीयता दी जाती है तथा संबन्धित व्यक्ति सम्मान का पात्र रहता है। इस प्रकार से व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है तथा उसे उच्च वर्ग की प्रस्थिति प्राप्त होती है।
5. आवास की स्थिति
व्यक्ति का आवासीय स्थान तथा उसके आस-पड़ोस में रहने वाले लोगों की प्रकृति भी वर्ग का निर्धारण करते हैं। कस्त्रों तथा शहरी क्षेत्रों के विकसित कालोनियों में रहने वाले व्यक्तियों की प्रस्थिति गंदी बस्तियों में रहने वाले व्यक्तियों से उच्च रहती है। इसके अलावा आवास स्थान कहाँ यह यह भी प्रस्थिति के निर्धारण में आवश्यक कारक है, जैसे- आवास स्थान का शहर के केंद्र अथवा बाहर होना।
6. आवासीय स्थान की अवधि
भारत जैसे परंपरावादी क्षेत्र में अपने निवास स्थान को बार बार छोडना ठीक नहीं माना जाता है। व्यक्ति की यादें, प्रेम, भावनाएँ आदि एक स्थान पर होती हैं तथा जो व्यक्ति अपने निवास स्थान को कई बार बादल रहा है उसे सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता है। इसके अलावा व्यक्ति के परिवार अथवा नातेदारों के बारे में भी इस बात को ध्यान दिया जाता है कि कहीं वह व्यक्ति किसी ऐसे घुमक्कड़ परिवार का सदस्य तो नहीं।
7. धर्म
ग्रामीण भारत में धर्म आज भी प्रस्थिति के निर्धारण में अत्यंत महत्वपूर्ण कारक है। यह बात शहरी भारत में भी थोड़ी-बहुत लागू होती है। धर्म तथा धार्मिक कार्यों से संबन्धित व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति उच्च होती है, यही कारण है कि पुरोहित की वर्गीय स्थिति उच्च रहती है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि, योगी, तपस्वी आदि ओ उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त थी तथा उनके प्रति सम्मान और आदर की भावना रखी जाती थी।
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