शोध की प्रकृति - Nature of Research

शोध की प्रकृति - Nature of Research

सामाजिक शोध की प्रकृति वैज्ञानिक है। सामाजिक तथ्यों, घटनाओं एवं सामाजिक जीवन के अध्ययन एवं विश्लेषण कि यह एक वैज्ञानिक विधि है। सामाजिक शोध का संबंध मुख्य रूप से यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति है। यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति के लिए वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है। निरीक्षण, परीक्षण, तथ्यों का संकलन, वर्गीकरण विश्लेषण आदि के द्वारा सामाजिक घटनाएं एवं समस्याओं के विषय में व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध ज्ञान प्राप्त करना तथा सिद्धांतों का निर्माण करना सामाजिक शोध का प्रमुख उद्देश्य है। मूलतः इसकी प्रकृति सामाजिक घटनाओं तथा समस्याओं को सही परिप्रेक्ष्य में समझने की है।

इस अर्थ में इसकी प्रकृति वैज्ञानिक है। सामाजिक जीवन को समझना इसका प्रमुख कार्य है। एक वैज्ञानिक पद्धति होने के नाते सामाजिक शोधकर्ता निरीक्षण, परीक्षण, तथ्यों का संकलन, वर्गीकरण व विश्लेषण की व्यवस्थित विधि को अपनाता है। इसी से इसकी वैज्ञानिक प्रकृति का स्पष्टीकरण मिलता है। सामाजिक अनुसंधान की एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि यह सामाजिक घटनाओं तथा घटनाओं के मध्य पाए जाने वाले संबंधों को खोज निकालने पर बल देता है। सामाजिक जीवन में सभी स्थानों पर अंतःसंबद्धता एवं अंतःनिर्भरता पाई जाती है। सामाजिक जीवन के सभी पक्ष एक दूसरे के साथ घनिष्ठ रूप से अंतर्संबंधित हैं। सामाजिक जीवन को भली-भांति समझने के लिए इन संबंधों का ज्ञान होना नितांत आवश्यक है। यही कार्य सामाजिक शोध द्वारा किया जाता है।


सामाजिक शोध तथ्यों तक पहुंचने के लिए कल्पना, अनुमान, पक्षपात, पूर्वाग्रह से परे निरीक्षण, परीक्षण, प्रयोग विश्लेषण और सामान्यीकरण पर आधारित वैज्ञानिक पद्धति का अनुसरण करता है। इसलिए सामाजिक शोध की प्रकृति वैज्ञानिक है। वैज्ञानिक शोधों की भांति ही सामाजिक अनुसंधानकर्ता भी कल्पना, तर्क, अनुमान से स्वयं को दूर रखता है। वैज्ञानिक शोध के ही समान सामाजिक शोध भी से अध्ययनकर्ता द्वारा स्वयं संपादित किया जाता है। इस प्रकार, सामाजिक शोध प्रयोग सिद्ध अनुभव पर आधारित होता है। समाजिक शोधकर्ता यद्यपि उस समाज और समुदाय का सदस्य होता है जिसका कि वह अध्ययन कर रहा है इसके बावजूद वह पक्षपात व पूर्वाग्रह से स्वयं को मुक्त रखकर तटस्थ रहते हुए सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करता है, जैसे की एक वैज्ञानिक पक्षपात और पूर्वाग्रह से परे रहकर तटस्थता पूर्वक अपनी विषय वस्तु का अध्ययन करता है। सामाजिक शोध में वैज्ञानिक शोध की ही तरह विषय वस्तु या सामग्री का अध्ययन उसकी पूर्णता में नहीं, बल्कि सूक्ष्म रूप में किया जाता है। अर्थात सामाजिक घटनाओं का सामान्य अध्ययन न कर विशेष दृष्टिकोण से एवं विशेष लक्ष्य को ध्यान में रखकर सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है। वैज्ञानिक शोध के समान ही सामाजिक शोध भी पूर्व निश्चित, पूर्वनियोजित विभिन्न चरणों में संपन्न होता है जो की क्रमबद्ध रूप में किए जाते हैं।

वैज्ञानिक शोध की में भांति सामाजिक शोध को संपादित करने के लिए विभिन्न उपकरणों, पद्धतियों का सहारा लिया जाता है। वैज्ञानिक शोध के समान ही सामाजिक शोध में नवीन तथ्यों की खोज व पूर्व से ज्ञात तथ्यों की पुनर्परीक्षा का सत्यापन किया जाता है। वैज्ञानिक शोध के माध्यम से प्राप्त निष्कर्ष सत्यापनशील होते हैं। ऐसी ही सत्यापनशीलता सामाजिक शोधों में भी पाई जाती है। वैज्ञानिक शोध में जिस प्रकार से तथ्यों के संकलन वह विश्लेषण के लिए सांख्यिकी पद्धति का उपयोग किया जाता है, उसी प्रकार सामाजिक शोध में भी सांख्यकीय पद्धति का चलन अब काफी प्रचलित हो गया है एवं कई प्रकार की नई पद्धतियां उपलब्ध होने लगी हैं जिसकी सहायता से तथ्यों का विश्लेषण व सामान्यीकरण अत्यंत सरल हो गया है।


उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि वैज्ञानिक शोध की ही भांति सामाजिक शोध की प्रकृति भी पूरी तरह वैज्ञानिक है एवं सामाजिक शोध या अनुसंधान से प्राप्त ज्ञान, नियम व सिद्धांत वैज्ञानिकता से परिपूर्ण होते हैं।