शोध की उपयोगिता - Usability of Research

शोध की उपयोगिता - Usability of Research


वर्तमान युग परिवर्तन और नियोजन का युग है। परिवर्तन ने जहां एक ओर मानवीय मूल्यों एवं सामाजिक संरचना को नवीन रूप दिया है, वहीं इसके फलस्वरूप समाज में अनेक नवीन समस्याओं का भी प्रादुर्भाव हुआ है। वास्तविकता तो यह है कि हमारा सामाजिक जीवन जैसे-जैसे जटिल होता जा रहा है. उस का वैज्ञानिक अध्ययन करना उतना ही आवश्यक हो गया है। सामाजिक शोध की उपयोगिताएं इसी तथ्य से स्पष्ट हो जाती है कि शोध के द्वारा ही विभिन्न प्रकार की समस्याओं का निष्पक्ष रूप से वैज्ञानिक अध्ययन करके प्रमाणिक तथ्यों को प्राप्त किया जा सकता है। यही तथ्य सिद्धांतों का निर्माण कर के भावी प्रवृतियों को स्पष्ट करने में सहायक होते हैं। आज जैसे-जैसे सामाजिक नियोजन के प्रति हमारी जागरूकता बढ़ रही है, सामाजिक शोध के द्वारा ही उपयोगी ज्ञान प्राप्त करके कल्याण में वृद्धि करना संभव है।

सामाजिक शोध का मुख्य उद्देश्य सामाजिक जीवन, सामाजिक प्रक्रियाओं, प्रतिमानों एवं सामाजिक व्यवहारों को यथार्थ रूप में समझना है। सामाजिक शोध के उद्देश्य को हमने दो रूपों में या परिप्रेक्ष में समझा है- सैद्धांतिक और व्यावहारिक सामाजिक शोध से प्राप्त ज्ञान के आधार पर समाज की समस्याओं का एक रुप से समाधान ढूंढा जा सकता है इस दृष्टिकोण से विभिन्न क्षेत्रों में सामाजिक शोध की उपयोगिता को निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है:


(1) सामाजिक घटनाओं के विषय में वास्तविक जानकारी एवं नवीन ज्ञान की प्राप्ति करने में सहायक:


सामाजिक शोध का प्रमुख उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति विज्ञान की खोज है। सामाजिक शोध सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों के संबंध में नवीन व वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करता है। नवीन ज्ञान से केवल मनुष्य की जिज्ञासाओं का ही समाधान नहीं होता बल्कि इसके द्वारा हमें उपयोगी ज्ञान भी प्राप्त होता है। जिसकी सहायता से प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ा जा सके। नवीन ज्ञान समाज का नए सिरे से पुनः निर्माण करने में भी सहायक होता है। सामाजिक शोध सामाजिक घटनाओं के संबंध में हमारी अज्ञानता को दूर कर घटना के विषय में यथार्थ की वास्तविक जानकारी उपलब्ध कराता है। 


(2) पूर्व ज्ञात तथ्यों के पुनर्परीक्षण में सहायक :


सामाजिक शोध न केवल नवीन ज्ञान उपलब्ध कराने का कार्य करता है, बल्कि पूर्व अज्ञात तथ्यों के सत्यापन का भी कार्य करता है। अर्थात यह पहले से प्राप्त ज्ञान में वृद्धि का कार्य करता है। मानव समाज एक जटिल व गतिशील समाज है, इसमें परिस्थितियां हमेशा बदलती रहती हैं। समय के परिवर्तन के साथ समाज में भी परिवर्तन होते रहते हैं। अतएव ऐसी स्थिति में ज्ञान के प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिए सामाजिक शोध पूर्व में स्थापित ज्ञान व सिद्धांत के पुनर्परीक्षण में सहायता प्रदान करता है ताकि उन सिद्धांतों व नियमों को वर्तमान रूप में परिवर्तित किया जा सके।


(3) सामाजिक जीवन से संबंधित नए नियमों व सिद्धांतों के निर्माण में सहायक :


सामाजिक शोध, सामाजिक जीवन, सामाजिक घटनाओं, प्रक्रियाओं एवं व्यवहार प्रतिमानों का अध्ययन कर उनका सामान्यीकरण करता है। जिसके आधार पर नए सिद्धांतों एवं नियमों का निर्माण संभव होता है। इस प्रकार सामाजिक शोध सामाजिक नियमों एवं सिद्धांतों के निर्माण में सहायता प्रदान करता है।


(4) सामाजिक घटनाओं के कार्य-कारण संबंधों का विश्लेषण करने में सहायक :


सामाजिक शोध, वास्तव में समाज विज्ञानों का आधार है। आज विभिन्न विज्ञानों के लिए अधिकाधिक प्रमाणित सामग्री सामाजिक शोध के माध्यम से ही प्राप्त होती है। सामाजिक शोध द्वारा सामाजिक घटनाओं का वैज्ञानिक विधि से अध्ययन किया जाता है। वैज्ञानिक शोध में प्रायः कार्य-कारण संबंधों का पता लगाने का प्रयास किया जाता है। कार्य कारण संबंधों की खोज विज्ञान की प्रमुख विशेषता है। इसी प्रकार सामाजिक शोध का मानना है कि जो भी सामाजिक घटना घटित होती है वह किसी न किसी कारण से प्रेरित होकर होती है।

सामाजिक शोध इन्हीं घटनाओं के पीछे छिपे कारणों का पता लगाने में उनका विश्लेषण करने का एक प्रयास करता है।


(5) सामाजिक नियंत्रण में सहायक


जब कभी भी कोई समाज परिवर्तन की प्रक्रिया में होता है तो अक्सर सामाजिक विघटन को प्रोत्साहन देता है। सामाजिक शोध द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में उत्पन्न असंतुलन की जानकारी प्राप्त करके सामाजिक जीवन को अधिक स्वस्थ बनाया जा सकता है। सामाजिक नियंत्रण सामाजिक संगठन की सुदृढ़ता एवं सामाजिक संबंधों को सुचारु व्यवस्था एवं गतिशीलता के लिए आवश्यक है। सामाजिक शोध समाज को सुचारु रुप से चलाने में सहायक होता है क्योंकि इसके द्वारा सामाजिक जीवन के संबंध में सही तथ्यों की जानकारी प्रदान की जाती है और मनुष्य के विरोधी कार्यों एवं व्यवहारों पर नियंत्रण प्राप्त करने में सहायता मिलती है।


(6) सामाजिक समस्याओं के निराकरण में सहायक:


वर्तमान समय में समाज में कई प्रकार की समस्याएं मुख बाए खड़ी हैं जैसे- बेरोजगारी, गरीबी, वेश्यावृत्ति बाल अपराध, भ्रष्टाचार, अपराध, दहेज समस्या आदि। अनेक विघटनकारी समस्याओं का सामना समाज में व्यक्ति को करना पड़ रहा है। इन समस्याओं के रहते हुए देश का सर्वागीण विकास संभव नहीं हो पा रहा है। सामाजिक शोध इन समस्याओं के संबंध में यथार्थ व वास्तविक जानकारी प्रदान कर उनके समाधान व निराकरण में सहायक होता है। 


(7) सामाजिक संघर्ष व तनाव को कम करने में सहायक:


वर्तमान समाज में विभिन्न मुद्दों को लेकर तनाव व संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होना आम बात हो गई है।

समाज में कई तथ्यों के संबंध में अवैज्ञानिक व भ्रांत धारणा व्याप्त हैं। रूढ़िवादिता, अंधविश्वास के कारण ऐसी कई मान्यताएं फैली हुई हैं जिनके कारण आज समाज में जब तब संघर्ष व तनाव के हालात उत्पन्न हो जाते हैं। सांप्रदायिक दंगे, जातीय संघर्ष, भाषाई तनाव ऐसी कई तनावपूर्ण स्थितियां पैदा हो जाती हैं जिससे समाज के संगठनात्मक स्वरूप को क्षति पहुंचती है। सामाजिक शोध इन सब के संबंध में वैज्ञानिक ज्ञान उपलब्ध कराकर समाज में उत्पन्न संघर्ष व तनाव की स्थिति को कम करने में प्रदान करता है।


(8) सामाजिक कल्याण के कार्यों में सहायक :


भारत देश में कई प्रकार की सामाजिक-आर्थिक समस्याएं हैं।

यहां ऐसे कई वर्ग हैं जिनकी सामाजिक व आर्थिक दशा अत्यंत कमजोर है जैसे कि महिला वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, श्रमिक वर्ग. पिछड़ा वर्ग आदि कि अपनी कई समस्याएं हैं जिनसे उन्हें जूझना पड़ता है। क्योंकि भारत एक कल्याणकारी राज्य है। जिसकी सहायता से सुविधाओं से वंचित वर्ग को समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जा सके। सामाजिक शोध द्वारा इन योजनाओं के सही क्रियान्वयन का मूल्यांकन किया जा सकता है। सामाजिक शोध के द्वारा इन कल्याणकारी कार्यक्रमों के संबंध में वैज्ञानिक ज्ञान उपलब्ध करा कर योजनाओं की सही क्रियान्वयन में सहायता प्रदान की जाती है।


(9) सामाजिक विज्ञान के विकास में सहायक


सामाजिक शोध एक वैज्ञानिक विधि है। इसके माध्यम से समाज व सामाजिक जीवन के संबंध में वैज्ञानिक ज्ञान की प्राप्ति होती है।

अपनी इसी वैज्ञानिक प्रवृत्ति के कारण ही सामाजिक शोध, सामाजिक विज्ञानों की प्रगति में सहायक हुआ है। सामाजिक शोध की सहायता से समाज के अध्ययन के लिए नित नए उपकरणों वह तकनीकों का विकास संभव हो पाया है। समाज के विभिन्न पक्षों का वैज्ञानिक ज्ञान प्राप्त कर सामाजिक जीवन का अध्ययन करने वाले विषय आज अपने को विज्ञान के रूप में स्थापित करने में समर्थ हो सके हैं। 


(10) समाज सुधार में सहायक:


सामाजिक शोध द्वारा प्राप्त ज्ञान से समाज की व्याधिकीय समस्याओं एवं गतिविधियों पर रोकथाम के हल प्राप्त होते हैं और समाज में उच्च पदों पर आसीन पदाधिकारियों को समाज की वास्तविक परिस्थिति को समझने में सहायता प्राप्त होती है। वे अपनी भूमिका का सही तरीके से निर्वाह तभी कर पाते हैं, जब सामाजिक शोध द्वारा समाज सुधार के लिए सुझाव उन तक पहुंचाए जाते हैं। 


(11) सामाजिक भविष्यवाणी करने में सहायक :


सामाजिक शोध कई व्यवहारिक दृष्टिकोणों से अत्यंत उपयोगी हैं। वैसे तो सामाजिक शोध का मुख्य उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति का परिमार्जन है। परंतु सामाजिक शोध से प्राप्त ज्ञान का अन्य लोग व्यवहारिक उपयोग भी करते हैं। सामाजिक शोध से प्राप्त ज्ञान के द्वारा वर्तमान समाज की स्थिति को समझकर भविष्य के संबंध में अनुमान लगाया जा सकता है। भविष्य में होने वाली या घटने वाली घटनाओं के संबंध में पूर्व जानकारी प्रदान की जा सकती है जिसकी सहायता से समाज में वर्तमान व भविष्य के मध्य संतुलन स्थापित करने में सहायता मिलती है।


सामाजिक शोध के इस संपूर्ण विवेचन से स्पष्ट होता है कि सामाजिक जीवन का आज कोई भी पक्ष ऐसा नहीं है जिसे शोध के अभाव में समुचित रूप से समझा जा सके। सामाजिक शोध का उद्देश्य केवल सैद्धांतिक ज्ञान में वृद्धि करना ही नहीं होता बल्कि मानवीय समस्याओं का समाधान खोजने एवं भावी चुनौतियों का प्रत्युत्तर देने में भी यह उतना ही अधिक सहायक है। आज यह कल्पना भी नहीं की जा सकती की सामाजिक शोध के बिना सामाजिक जीवन को संगठित और प्रगतिशील बनाया जा सकता है। इस दृष्टिकोण से सामाजिक शोध की प्रकृति एवं इससे संबंधित विभिन्न पक्षों को समझना समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए उतना ही अधिक आवश्यक है जितना कि बौद्धिक निपुणता प्राप्त करने के लिए विद्यार्थियों का जागरूक होना आवश्यक है।