लोक कथाओं का वर्गीकरण - Classification of Folktales

लोक कथाओं का वर्गीकरण - Classification of Folktales


लोक-कथाओं का विषयफलक अत्यन्त विस्तृत है। इसे विभाजन की सीमा रेखा में समेटना दुष्कर और जटिल समस्या है। एक ही कथा विषयवस्तु, उद्देश्यादि कारणों से एक-से अधिक वर्गों में स्वीकार की जाती है फिर भी अध्ययन की सुविधार्थ अनेक विद्वानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण के अनुसार इनका वर्गीकरण किया हैं, जो इस प्रकार है-


प्राचीन भारतीय आचार्यों ने कथा साहित्य को दो भागों में विभक्त किया है-


1. कथा : इसमें कल्पना तत्त्व की प्रधानता होती है । इसमें कथानक का आधार ऐतिहासिक घटना होती है ।


2. आख्यायिका


आचार्य आनन्दवर्धन ने कथा के तीन भेद स्वीकार किये हैं-


1. परिकथा


2. सकल कथा


3. खण्ड कथा


हरिभद्राचार्य ने कथा के चार भेद किये हैं-


1. अर्थ कथा

1

2. काम कथा


3. धर्म कथा


4. संकीर्ण कथा


डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय का वर्गीकरण इस प्रकार है- -


1. नीति कथा


2. व्रतकथा


3. प्रेमकथा


4. मनोरंजक कथा


5. दंतकथा


6. पौराणिक कथा


डॉ. दिनेशचन्द्र सेन का वर्गीकरण इस प्रकार है-


1. रूप कथा


2. हास्य कथा


3. व्रतकथा


4. गीतकथा


डॉ. सत्येन्द्र-कृत वर्गीकरण इस प्रकार है-


1. गाथाएँ


2. पशु-पक्षी सम्बन्धी कथाएँ


3. परी की कथाएँ


4. विक्रम की कहानियाँ


5. बुझौवल सम्बन्धी कहानियाँ


6. निरीक्षण गर्भित कहानियाँ


7. साधु- पीरों की कहानियाँ


8. कारण निर्देशक कहानियाँ


प्रस्तुत विवरण से स्पष्ट है कि यद्यपि विद्वानों ने कथाओं के विपुल भण्डाकर को वर्गों में बाँटने का प्रयास किया है किन्तु वे इस कार्य में पूर्णतः सफल नहीं हो सके हैं। ये वर्गीकरण समय-समय पर बदलते भी रहे हैं और आगे भी बदलते रहेंगे।

निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार आगे जिन कथाओं पर चर्चा करेंगे, वे इस प्रकार हैं. फेबुल, व्रतकथा, परीकथा, लीजेंड, मिथ: पौराणिक कथा, नाग कथा, बोध कथा ।


1. फेबुल (कल्पित कथा)


कथाएँ जिनका सम्बन्ध पशु-पक्षियों से होता है तथा जिनमें कोई उपदेश निहित रहता है उन्हें फेबुल कहते हैं। इनमें पशु-पक्षियों का चित्रण मानवीय पात्र के समान होता है। जहाँ ये अपनी जातीय प्रवृत्ति से सर्वथा अलग रूप में चित्रित होते हैं। इन कथाओं का मूल उद्देश्य मानव समाज को नैतिक शिक्षा देना होता है।

इन फेबुल को लोक कथा का प्रारम्भिक रूप स्वीकार किया जाता है। भारत में फेबुल की प्राचीनतम परम्परा विद्यमान है। यहाँ कथासरित्सागर, पंचतंत्र जातककथाओं आदि में पशु-पक्षी सम्बन्धी कथाओं का समृद्ध भण्डार मिलता है।


फेबुल में जीव-जन्तु आदि के माध्यम से मनुष्य को शिक्षा देने की प्रवृत्ति पाई जाती है। इन्हें दो भागों में बाँटा जाता है – प्रथम भाग, जिसमें उदाहरण द्वारा नैतिक शिक्षा दी जाती है और दूसरे भाग में लोकोक्ति के रूप में उपदेश कथन पाया जाता है। इस शैली की विशेषता और उच्च कोटि की नैतिक शिक्षा के कारण यह माना जाता है कि फेबुल की रचना सभ्य-सुसंस्कृत विद्वानों ने की होगी किन्तु जनसाधारण ने इन्हें सहज भाव से अपना लिया होगा तब ये लोक कथा की मौखिक सम्पत्ति बन गई।


2. व्रतकथा


भारत धर्मपरायण देश है। यहाँ के प्रदेशों में मनोरंजन के साथ ही धार्मिक प्रवृत्ति को जाग्रत् करने और धर्म की श्रेष्ठता को प्रतिपादित करने वाली अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। धर्म के प्रति आस्था रखने वाले लोक समाज में व्रतों, त्योहारों और अनुष्ठानों का विशेष और आदरणीय स्थान होता है। यहाँ सप्ताह के प्रत्येक दिन और माह की प्रत्येक तिथि पर कोई-न-कोई व्रत होता है। यहाँ 33 कोटि देवी-देवताओं के साथ अनेक लोक देवता और नायकों की पूजा का भी प्रचलन है अतः व्रतों और अनुष्ठानों के माहात्म्य को प्रकट करने वाली कथाएँ विपुल मात्रा में उपलब्ध होती हैं।


प्रत्येक वार की व्रतकथाएँ, पूनम (पूर्णिमा) की व्रतकथा,

करवाचौथ, गणेशचतुर्थी की व्रतकथा, वैशाख मास की व्रतकथाएँ, सावन की कथाएँ, कार्तिक मास की कथाएँ आदि अनेक कथाएँ हैं जो अलग-अलग बार, तिथि या माह में अवसरानुकूल कही-सुनी जाती हैं। इन कथाओं में व्रत-सम्बन्धी देवी-देवता का चित्रण सर्वशक्तिमान् और सर्वव्यापी के रूप में किया जाता है। इन कथाओं में व्रत की पालना से श्रीवृद्धि, व्रत पालना में कमी से देव-विशेष के कोप का प्रभाव, व्रत का महत्त्व और व्रत के विधि-विधान का वर्णन होता है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि व्रत रखने तथा उसकी कथा सुनने से मनोकामना की पूर्ति तथा पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इन व्रत कथाओं में जन-समाज की धर्म-आस्था प्रधान जीवनशैली के दर्शन होते हैं। सुखान्तता और प्राणी मात्र के कल्याण की भावना इन व्रत कथाओं की उल्लेखनीय विशेषता है।


3. परीकथा (फयरी टेल्स)


'फेयरी' शब्द लैटिन के 'फेटुम' से बना है, जिसका अर्थ है जादू अथवा इन्द्रजाल । अतः फेयरी शब्द - से अदृश्य तथा अमानवीय प्राणियों का बोध होता है। परियों तथा अमानवीय प्राणियों से सम्बन्धित लोक- कथाओं को परीकथा या 'फेयरी टेल्स' कहा जाता है। ये कथाएँ समस्त विश्व के प्रत्येक देश में उपलब्ध होती हैं। इन कथाओं में परियों द्वारा मानव को सहायता प्रदान करना, परियों द्वारा मानव को क्षति बहुलता से पहुँचाना, मनुष्यों का अपहरण करना, कृत्रिम पुत्र प्रदान करना, परियों की दुनिया की सैर और परी का मनुष्य की प्रेमिका के रूप में चित्रण के वर्णन मिलते हैं। इस प्रकार परियों को मानव-सहयोगी और मनुष्य-द्वेषी दोनों रूपों में दर्शाया गया है।


परी कथाओं में परियों द्वारा मनुष्य के परोपकार की अनेक कहानियाँ प्रचलित हैं जो जन समुदाय, विशेषकर बाल-वर्ग में बड़े चाव से सुनी जाती हैं। इन कथाओं में परियाँ नायक की सहयोगी बनती हैं और उसे धन-धान्य, श्री सम्पत्ति से परिपूर्ण कर देती हैं। परियों के सहयोग से असम्भव से असम्भव कार्य भी सहजता से सम्पन्न हो जाते हैं। इसी प्रकार इन कथाओं में ऐसी परियों का चित्रण भी मिलता है जो बुरी प्रवृत्ति की होती हैं। ये अपनी जादुई ताकतों से मनुष्य को क्षति पहुँचाती हैं। कुछ कहानियों में परियों को मनुष्य के अपहरणकर्ता के रूप में भी चित्रित किया गया है। इस अपहरण में निहित विविध कारण कथा को विस्तार देते हैं।

मनुष्य में वंश-परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र प्राप्ति की सहज अभिलाषा देखी जाती है, परीकथाओं में परियों को निस्संतान दम्पति की इस कामना को पूरा करते दिखाया गया है। परीकथाओं में मनुष्य को परीस्तान की यात्रा करते हुए भी दिखाया गया है, जिसमें परीस्तान के अलौकिक दृश्य कथा को रोचक बनाते हैं। इसके अतिरिक्त अत्यन्त रोचक प्रसंग उन कथाओं में देखने को मिलते हैं, जिनमें परी को साधारण मनुष्य की प्रेमिका के रूप में चित्रित किया गया है। ये कथाएँ विविध-विचित्र प्रसंगों से श्रोतागणों पाठकों की उत्सुकता को बनाये रखती हैं। भारतीय लोक-कथाओं में परियों के अतिरिक्त इन्द्रलोक की अप्सराओं को भी इस रूप में चित्रित किया गया है।


4. लीजेंड (दंतकथा)


किसी साधु पुरुष अथवा धर्म के नाम पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले वीर पुरुष की ऐसी कथा जो ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित हो और उसमें परम्परागत मौखिक सामग्री का समन्वय हो, उसे लीजेंड कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ऐतिहासिक घटना के ताने पर कल्पना का बाना गूंथ कर लीजेंड की रचना की जाती है। भारत में इतिहासप्रसिद्ध वीर पुरुषों, लोककल्याण के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले महापुरुषों और सतीत्व- रक्षक नारियों की ऐसी अनेक कथाएँ उपलब्ध हैं। इनमें एक ओर ऐतिहासिक चरित्रों का उल्लेख होता है, वहीं दूसरी ओर इतिहास की पृष्ठभूमि पर कुछ ऐसे काल्पनिक पात्रों की रचना भी की जाती है, जो उस कथा में ऐतिहासिकता की अनुभूति को बढ़ाते हैं और मुख्यपात्र के चरित्र के उज्ज्वल पक्ष को उभारते हैं ।


भारतीय लोकसमाज में प्रचलित राजा भोज की कथा (उदारता ), राजा विक्रमादित्य की कथा ( न्यायप्रियता), राजा हरिश्चन्द्र की कथा (सत्यवादिता), पाबूजी री बात (वीरता), जगदेव पँवार री बात (त्याग), वीरमदे (आत्मसम्मान, सतीत्व की रक्षा) की कथाएँ विविध चारित्रिक गुणों से युक्त ऐतिहासिक पात्रों की कथाएँ हैं, जो आज भी लोक मानस को चारित्रिक गुणों के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की प्रेरणा देती है। इन कथाओं में इतिहास और कल्पना का नीर-क्षीर सम्मिश्रण हो गया है अतः निश्चित करना कठिन है कि कहाँ तक इतिहास है और कहाँ तक कल्पना ? लोक मानस भी इनकी प्रामाणिकता पर प्रश्न नहीं करता वरन् पात्रों के प्रति अपना सम्मान दर्शाता है।


5. मिश्र (पौराणिक कथा)


मिथ वे कथाएँ हैं जो श्रोता या पाठक के ईश्वर में विश्वास और आस्था पर निर्भर होती हैं। इनमें देवी- देवताओं को प्रधान पात्र के रूप में दर्शाया जाता है। ये कथाएँ लीजेंड से काफी मिलती-जुलती प्रतीत होती हैं। इन दोनों को विलग करने वाली रेखा बड़ी सूक्ष्म होती है। इनके भेद को हम इस प्रकार जान सकते हैं कि मिथ की पृष्ठभूमि धार्मिक होती है जबकि लीजेंड की रचना ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर की जाती है। मिथ के प्रधान पात्र देवी- देवता होते हैं जबकि लीजेंड के प्रधान पात्र लोकप्रसिद्ध वीर पुरुष, सतीत्व-रक्षक नारी और लोककल्याण की भावना से युक्त सज्जन पुरुष होते हैं। लोकप्रसिद्ध राजा हरिश्चन्द्र की कथा लीजेंड की श्रेणी में रखी जा सकती है, वहीं देवासुर संग्राम या ईश्व के विभिन्न अवतारों की कथाएँ मिथ कही जाएँगी ।


मिथ के साथ लोक मानस की धार्मिक आस्थाएँ और विश्वास जुड़े होते हैं। इन कथाओं में सृष्टि की रचना, अलौकिक घटनाएँ और देवी-देवताओं की कथाओं का वर्णन होता है। विविध धार्मिक अनुष्ठानों में इन पौराणिक कथाओं का वाचन श्रवण होता है। धर्मावलम्बी लोक इन कथाओं को बड़ी श्रद्धा और विश्वास से सुनता है ।


6. नागकथा


भारतीय लोक कथाओं में नाग-कथाओं की समृद्ध परम्परा रही है। विविध लोक-कथाओं में नाग के कल्याणकारी और विनाशकारी दोनों रूपों का चित्रण किया गया है।

इन लोक-कथाओं की पृष्ठभूमि में लोकप्रचलित मान्यताएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं। जैसे, यह माना जाता है कि नाग-नागिन अपने जोडीदार का अनिष्ट करने वाले से प्रतिशोध लेते हैं, नागों के पास नागमणि होती है, नाग इच्छाधारी होते हैं, नाग पाताललोक में निवास करते हैं। इन्हीं धारणाओं के अनुसार नाग-कथाओं में कल्याणकारी रूप में नाग कभी भातृविहीन बहन का भाई बनकर 'माहेरा' भरता है, तो कभी निस्संतान दम्पति का पुत्र बनकर उनके अभिशप्तक जीवन को सुखमय बनाता है। इन कथाओं में नाग अपने जोड़ीदार को मारने पर उसका प्रतिशोध लेता है। वहीं इच्छाधारी नाग पुरुष रूप धारण कर सुन्दर कन्या अथवा राजकुमारी से विवाह रचा लेता है। ये सभी कथानक नाग-कथाओं में वर्णित हैं।


लोक समाज में वे कथाएँ भी स्थान पाती हैं, जिनमें नाग को दूध पिलाकर उसकी सेवा कर अभीष्ट की प्राप्ति होती है। इस प्रकार नाग-कथाओं में विविध घटनाओं और प्रसंगों को आधार बना कर नाग को देव रूप में स्थापित किया गया है।


7. बोध कथाएँ


बोध कथाएँ वे कथाएँ हैं, जो आकार में छोटी होने पर भी पर्वत की ऊँचाई और समुद्र की गहराई को अपने में आत्मसात् किये रहती हैं। लोक-साहित्य में इन बोध कथाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन कथाओं में उपदेश देने की प्रवृत्ति होती है, जो इन कथाओं की आत्मा कही जा सकती है। इन कथाओं द्वारा मनुष्य को जीवन में सावृत्तियों को अपनाने की प्रेरणा मिलती है वहीं लोक व्यवहार की बातों का भी सहज बोध हो जाता है।

इन बोध कथाओं में विभिन्न नीतियों का निचोड़, सांसारिक सत्य का ज्ञान, अनुभूत ज्ञान का प्रकाश और सुन्दर जीवनयापन हेतु मार्गदर्शन प्राप्त होता है। इन कथाओं में निहित ज्ञान के कारण ये देश-काल की सीमा में आबद्ध नहीं रहती और सभी के लिए समान रूप से उपयोगी सिद्ध होती हैं।


बोध कथाओं का शिल्प सीधा-सादा और सरल होता है। इनमें एक ही प्रसंग अथवा घटना का चित्रण होता है और अवान्तर कथाओं का अभाव होता है। इनमें पात्रों की संख्या भी कम होती है। इन कथाओं का मूल उद्देश्य जन समाज को शिक्षा देना होता है अतः कथा के अन्त में कथा के उद्देश्य अथवा ज्ञान को स्पष्ट करने की परम्परा भी मिलती है। पंचतंत्र की कथाओं को इस श्रेणी के अन्तर्गत रखा जा सकता है।